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| Photo Sapna Chandra |
माना कि तुम्हारी याद सता रही है
मंजिल नहीं कोई बता रही है
रंजो ग़म से भरा है दिल ये मगर
एक नया रास्ता दिखा रही है
कह पाए नहीं बात जुबां तक रही
जो बात अबतक रूला रही है
दुनिया को बताएं भी क्या आखिर
आंखें हर बात को छुपा रही है
पीर है जिगर का जलाकर जाएगा
आग धीरे ही सही जला रही है
एक तुम ही नहीं शब भी रोती है
बूंदें शबनम की बहला रही है
खुशियां आएगी मिलने बहाने से
यही सोच हमको हँसा रही है
मन रूठा हो मिलो कुछ फूलों से
देखो सब हँसना सिखा रही है
लेखिका - सपना चन्द्रा
कहलगांव भागलपुर बिहार
