Shraddha Shaurya Biography : वैसे तो श्रद्धा शौर्य के बारे में ज्यादा जानकारी प्राप्त नहीं है लेकिन फिर भी आपको प्राप्त जानकारी के आधार पर कुछ जानकारी हम दे देते है । श्रद्धा शौर्य भारत की एक युवा और ऊर्जावान कवयित्री हैं, जिनका जन्म 29 मार्च को महाराष्ट्र के नागपुर शहर में हुआ। अपनी सशक्त वाणी, प्रभावशाली अभिव्यक्ति और जोशीले मंच प्रदर्शन के कारण श्रद्धा ने बहुत कम समय में हिंदी कविता जगत में एक अलग पहचान बनाई है।
श्रद्धा शौर्य की रचनाएँ विविध विषयों को स्पर्श करती हैं — राष्ट्रप्रेम, वीरता, सामाजिक मुद्दे, नारी सशक्तिकरण और मानवीय संवेदनाएँ उनके लेखन के प्रमुख केंद्र हैं। यद्यपि वह लगभग हर विधा में लिखती हैं, परंतु मंच पर उनकी पहचान मुख्य रूप से वीर रस कवयित्री के रूप में है। उनकी कविताएँ जोश, उत्साह और देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत होती हैं, जो श्रोताओं के हृदय को स्पंदित कर देती हैं।
उनकी चर्चित रचना “चूड़ी” को आम दर्शकों और श्रोताओं ने विशेष रूप से सराहा है। इस कविता के माध्यम से उन्होंने नारी की शक्ति, उसके संघर्ष और आत्मसम्मान की आवाज़ को प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया।
श्रद्धा ने रेडियो, टीवी चैनलों और विभिन्न साहित्यिक मंचों पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। उनकी प्रस्तुतियाँ केवल कविताएँ नहीं होतीं, बल्कि वे युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बनती हैं। श्रद्धा शौर्य आज की पीढ़ी में साहित्य और कविता के क्षेत्र में एक नई ऊर्जा का संचार कर रही हैं।
यह युवा कवयित्री न केवल शब्दों से, बल्कि अपने विचारों से भी समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का प्रयास कर रही हैं। श्रद्धा शौर्य निस्संदेह आने वाले समय में हिंदी कविता की अगली पीढ़ी की अग्रणी आवाज़ बनकर उभर रही हैं।
Who is Shraddha Shaurya?
Shraddha Shaurya is a young Veer Ras poet from Nagpur, Maharashtra, known for her powerful poems on patriotism, women empowerment and social issues.
श्रद्धा शौर्य की कुछ कविताएं -
1.
तुम आओगे, संग लाओगे, मीठा सा मधुमास,
शायद उस दिन खुल पाए इन आंखों का उपवास।
तुलसीदल - गंगाजल आंखे
पावन सा पूजास्थल आंखे
नूतन निर्मल शैशव जैसी
कोमलतम दो निश्छल आंखे
तुम बिन मानो दण्डक वन में काट रही वनवास
जोगी सा संकल्प किये हैं
दृश्य दृगों ने त्याग दिए हैं
भंवरे-कलियां वन उपवन से
अनजाना बैराग लिए हैं!
योग छली है, नित करता है यौवन का उपहास
इन नयनों से मेघ छटेंगे
और कर्म के भोग कटेंगे
दर्शन देंगे देव इन्हें जब
तब इनके उपवास मिटेंगे
सदियां बीत गयी हैं लेकिन फिर भी है विश्वास
कवयित्री - श्रद्धा शौर्य
2.
आह! जीवन की ऐसी बुनावट रही,
पुष्प पर कण्टकों की कसावट रही।
गीत गाते अधर, मुस्कुराते अधर
हर घड़ी उस हलाहल को पीते रहे
भावनाओं में भीगे कई कंठ हैं
जो नदी के किनारों पे रीते रहे
रोज़ छलते रहे कुछ सुनहरे हिरन
प्रेम के नाम पर बस बनावट रही
प्यास छोड़ी गई आस बाँधी गयी
अश्रुओं का सतत ही किया आचमन
देव की मूर्ति को जो तरसते रहे
केश पर सज रहे वे अभागे सुमन
मसखरे की तरह खुलके हँसते रहे
किन्तु नेपथ्य में क्यों थकावट रही
मन के आँगन के कंगन उतारे गए
देह की देहरी पर मली रोलियाँ
स्वप्न की अर्थियाँ अधजली छोड़कर
फिर सजाईं गईं कर्म की डोलियाँ
जब कभी शुभ शकुन की बजी पायलें
उस समय ही अशुभ की रुकावट रही
जानकर जानकी ने चुना रामपथ
कंचनी मृग छली मार्ग लाया गया
मन्थराएँ मिली हर घड़ी हर डगर
हर मुकुट भाल पर से हटाया गया
ग्रन्थ के स्वस्तिमय मंगलाचरण में
श्राप की उक्तियों की मिलावट रही
कवयित्री - श्रद्धा शौर्य
3.
यमुना के तीरे हौले हौले जो लुभाये मन
साँवरी सलोनी घनश्याम जैसी अँखियाॅं ।
चोरी से चुराए चित्त चंचल सी चितवन
हाए रे कन्हाई! ब्रजधाम जैसी अँखियाँ ।
बार बार सरयू के नीर में नहाई लगें
कोमल किशोर राजा राम जैसी अँखियाँ ।
ध्यान से निहार लो तो जोग लग जाए हाए
रति को रिझाएँ तेरी काम जैसी अँखियाँ ।
लेखिका - श्रद्धा शौर्य
4
या तो युद्ध छेड़ दो हमसे
या फिर आत्मसमर्पण कर दो
या तो सब कुछ अर्पण कर दो
या रिश्ते का तर्पण कर दो
या तो ये सिंदूरी सपने चूनर ओढ़ें मङ्गल गाएँ
या फिर सारी आकांक्षाएं मरघट जाकर भस्म रमाएँ
या यादों की मुक्त तरंगें यमुना के तट पर इठलाएँ
या भावों के पाश सदा को गंगा के भीतर छिप जाएँ
चाहो तो अब राह मोड़ दो
या पथ का प्रत्यार्पण कर दो
या तो सब कुछ अर्पण कर दो
या रिश्ते का तर्पण कर दो
या तो पहनाकर जयमाला जीवन पर अधिकार जताओ
या फिर इस आधेपन को तुम अंतिम श्वेतवस्त्र पहनाओ
या तो अधिकारों की कोई सुंदर सुघड़ मुद्रिका लाओ
या फिर प्यासे संबंधों की शेष सभी अस्थियाॅं बहाओ
या तो अंतर दे दो हमको
या फिर आँखे दर्पण कर दो
या तो सब कुछ अर्पण कर दो
या रिश्ते का तर्पण कर दो
कवयित्री - श्रद्धा शौर्य
5.
भावों को विस्तार नहीं मिल पाया है
जीवन को शृंगार नहीं मिल पाया है
मन मंदिर के देव मिले तो हैं लेकिन
पूजा का अधिकार नहीं मिल पाया है
लेखिका - श्रद्धा शौर्य
6.
सौभाग्य जाने क्यों यहाँ संदेह का बल ढो रहा है,
यह समय की चाल है, या सब सुमङ्गल हो रहा है!
क्यों अशुभ की कल्पनाएं द्वार का दीपक बनी हैं,
और मन की देहरी पर कुछ विचारों में ठनी हैं,
सात रंगों के मिलन से सज चुकी ये अल्पनाएं,
हैं सुशोभित सुखद सुंदर किंतु कुछ-कुछ अनमनी हैं।
कौन मन के बाग में ये नागफनियाँ बो रहा है!
यह समय की चाल है, या सब सुमङ्गल हो रहा है!
ज़िन्दगी सुमनों भरी पगडंडियों पर चल रही है,
रिस रहे हर घाव पर यूं लेप मानो मल रही है,
सच सलोने स्वप्न जैसा आज लगता है सुकोमल,
या कि बनकर स्वर्णमृग यह ज़िन्दगी ही छल रही है,
क्या किसी उपवास का फल पातकों को धो रहा है,
यह समय की चाल है, या सब सुमङ्गल हो रहा है!
द्वार पर आयी हुई जो देवकन्या लग रही है,
आस पर जिसकी यहाँ दमकी हुई जगमग रही है,
शुभ शकुन की स्वामिनी ने भाग्य का है द्वार खोला,
या कि विषकन्या हृदय को घात करके ठग रही है,
क्यों अशुभ का भय लिए उल्लास भी अब रो रहा है,
यह समय की चाल है, या सब सुमङ्गल हो रहा है!
लेखिका - श्रद्धा शौर्य
7.
क्षोभ में डूबे हुए इस यक्ष मन को मत सताओ
आ गया आषाढ़ देखो, मेघदूतो पास आओ
भाग्य यूँ प्रत्येक युग में प्रेम को संताप देगा
हर अभागे यक्ष को राजा विरह का शाप देगा
किंतु तुम आषाढ़ के इस प्रथम दिन को मत भुलाना
हे जलद! होकर सुखद हर रामगिरि के पास आना
इस दुखी, विरही हृदय का भार अब तुम ही उठाओ
आ गया आषाढ़ देखो, मेघदूतो पास आओ
प्रेम के कितने उपासक तृषित जीवन काटते हैं
वे सभी पीड़ा हृदय की बस तुम्हीं से बाँटते हैं
मास दिन सहते रहे हैं चंद्र की सोलह कलाऍं
चाहते हैं अब किसी को वेदना मन की बताएँ
भाग्य के संदेश सारे प्रियतमा को जा सुनाओ
आ गया आषाढ़ देखो, मेघदूतो पास आओ
दूर है अलकापुरी तुम विंध्य पर विश्राम करना
मार्ग में उज्जैन की पावन धरा पर माथ धरना
रामगिरि की घाटियों से प्रियतमा अल्कापुरी तक
चूमकर चर्मण्यवति को पहुॅंचना हिम की धुरी तक
कल्पतरु के पास वाली खिड़कियों पर गुनगुनाओ
आ गया आषाढ़ देखो, मेघदूतो पास आओ
लेखिका - श्रद्धा शौर्य
8.
पूछ लो जाकर पुरोहित,
ज्योतिषी या देवता से
जाग जाए पुण्य कोई
मन्त्र से, वैदिक कथा से
सो रहे निज भाग्य का व्याकुल कुसुम क्या खिल सकेगा ?
दान शुभ सिंदूर का उनसे मुझे क्या मिल सकेगा ?
स्निग्ध कर क्या देव के पाणिग्रहण को बढ़ सकेंगे ?
क्या अभागे यह चरण सौभाग्य की देहरी चढ़ेंगे ?
पुण्य परिणय सूत्र में मनमान्य सा संबंध होगा ?
या कि जीवन भर विधाता! क्षोभ से अनुबंध होगा ?
दोष सारे कट सकेंगे
प्रेम की पावन प्रथा से ?
या कि मन रोता रहेगा
जन्म जन्मांतर व्यथा से ?
भाग्य के कर कँवल से सुख का चँवर फिर झिल सकेगा ?
दान शुभ सिंदूर का उनसे मुझे क्या मिल सकेगा ?
लेखिका - श्रद्धा शौर्य




