हिंदी कहानी - जादुई रात और दादी का घर
इशान अपनी माँ का हाथ कसकर पकड़े हुए दादी के पुराने घर के सामने खड़ा था। सूरज धीरे-धीरे ढल रहा था और पेड़ों की परछाइयाँ ज़मीन पर लंबी होती जा रही थीं। इशान को दादी से बहुत प्यार था, लेकिन रात के समय उनका बड़ा और पुराना घर उसे थोड़ा डरावना लगता था। माँ ने उसे गले लगाया और कहा, "घबराओ मत इशान, तुम यहाँ बहुत मजे करोगे।"
जब माँ और पापा चले गए, तो इशान दरवाज़े पर खड़ा उन्हें हाथ हिलाकर विदा करने लगा। अब घर में सिर्फ इशान और उसकी दादी, सरोज थी । दादी ने उसके कंधे पर हाथ रखा और मुस्कुराते हुए कहा, "चलो इशान, आज रात हम एक रोमांचक सफर पर चलेंगे। लेकिन पहले, गरमा-गरम खाना खाते हैं।" इशान को थोड़ा बेहतर महसूस हुआ।
रात के खाने के बाद, इशान को अपने कमरे में जाना था। दादी के घर की सीढियाँ चढ़ते समय 'चर- चर' की आवाज़ आ रही थी। इशान रुक गया। उसे लगा कि अंधेरे कोने में कोई छिपा हुआ है। उसका दिल ज़ोर -ज़ोर से धड़कने लगा। वह जल्दी से अपने बिस्तर की ओर भागा। इशान अपने बिस्तर पर लेट गया और कंबल को अपनी नाक तक खींच लिया। अचानक, खिड़की के पास से सर-सर' की आवाज़ आई। उसे दीवार पर एक अजीब सी आकृति दिखाई दी। इशान ने अपनी आँखें ज़ोर से बंद कर लीं और सोचने लगा कि काश वह अपने घर पर होता।
तभी दरवाज़ा धीरे से खुला। दादी सरोज कमरे में आई, उनके हाथ में एक पीली रोशनी वाली टॉर्च थी। "क्या हुआ इशान? क्या तुम्हे नींद नहीं आ रही/" उन्होंने धीमे से पूछा। इशान ने फुसफुसाते हुए कहा, "दादी, इस घर में अजीब आवाजें आती हैं और दीवार पर कोई राक्षस है।"
दादी मुस्कुराई और इशान के पास बिस्तर पर बैठ गई। "चलो, हम इन आवाज़ों और आकृतियों का सच पता लगाते हैं," उन्होंने कहा। उन्होंने टॉर्च की रोशनी फर्श की ओर की। "देखो इशान, वह 'चर-चर' की आवाज़ तो बस पुरानी लकड़ी की सीढ़ियाँ हैं, जो रात में ठंडेी हवा पाकर आराम से अंगड़ाई ले रही हैं।
फिर दादी ने टॉर्च की रोशनी दीवार पर उस 'राक्षस' की ओर घुमाई । "और जिसे तुम राक्षस समझ रहे थे, वह तो खिडकी के बाहर वाला नीम का पेड़ है। देखो, जब हवा चलती है, तो उसकी पत्तियाँ ऐसे हिलती हैं जैसे वह तुम्हें गुड नाइट' कह रही हों।" दादी ने हाथ हिलाकर दिखाया तो दीवार पर भी वैसी ही छाया बनी।
इशान को अब मज़ा आने लगा था। दादी ने टॉर्च को बिस्तर के पास रखा और अपनी उंगलियों से दीवार पर एक खरगोश की आकृति बनाई। इशान ने भी कोशिश की और एक उड़ते हुए पक्षी की छाया बनाई। "दादी, ये छायाएँ तो डरावनी नहीं, ये तो जादुई हैं। इशान हँसते हुए बोला।
इशान की आँखें धीरे-धीरे बंद होने लगीं। कमरे में अब भी वही पुरानी आवाजें थीं, लेकिन अब वे इशान को किसी प्यारी लोरी की तरह लग रही थीं। दादी ने उसके माथे को चूमा और वह गहरी और मीठी नींद में सो गया। उसे पता था कि कल सुबह दादी के साथ एक और नया रोमांच इंतज़ार कर रहा है।
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